क्या भारत विकास पथ पर अग्रसर? भाजपा में दूरदृष्टि की कमी या फिर ज्ञान की कमी?

करन पलसानिया

(राष्ट्रीय सह- सयोजक केन्द्रीय विश्वविध्यालय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, डॉक्टरेट रिसर्च स्कॉलर, ब्रिक्स इंडिया रिप्रेजेन्टेटिव, इंडो- श्रीलंका फाउंडेशन रिप्रेजेन्टेटिव, एवम सामाजिक कार्यकर्ता)

भारत सरकार ने सौर उर्जा एवम पवन उर्जा पर तेज़ी से कार्य शुरु किया है एवम 2.17 बिलियन का बजट पास किया है| इसी के साथ में इलेक्ट्रॉनिक कारो को बाजार में लाने की बात बहुत जोरो से चल रही है| 10 लाख करोड़ सड़क निर्माण के लिये  भी खर्च करने का प्रावधान किया गया है| आखिर माजरा क्या है? भारत सरकार क्या सही दिशा में कार्य कर रही है? इस वैचारिक रिक्तता को समझना आवश्यक है|

मानव सभ्यता बहुत समय से परिवर्तन के दोर से गुजरी है और इन परिवर्तनों को हम मोटे तौर पर जैविक एवम सांस्कृतिक परिवर्तन के तौर पर मान सकते है| सांस्कृतिक परिवर्तनों को भी हम कई रूपों में देखते है| इसी क्रम में तकनीकि विकास को भी रखा जाता है|

तकनीकि विकास का ही परिणाम औधोगिक क्रांति का मूल कारण था| औधोगिक क्रांति के लिये कृषि क्रांति ने अनुकूल वातावरण तैयार किया| उस समय में ब्रिटेन में औधोगिक क्रांति की मशीनो को चलाने के लिये कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था| इस प्रकार से सभी परिस्थितयों की वजह से ब्रिटेन में औधोगिक क्रांति का आगाज हुआ एवम लंबे समय तक उसने विश्व पटल पे अपनी पैठ बनाये रखी| ये सिलसिला दूसरी औधोगिक क्रांति (20 वी शताब्दी के शुरुआती सालों में) तक चलता रहा  जब प्रथम विश्वयुद्ध छिडा तो उसके लिये ऑस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या मात्र एक गौण कारण था| वास्तविक कारण उस समय की तकनीक का पराकाष्ठा पर पहुच जाना था जो की गौण होती जा रही थी तथा विश्व की जरूरतों को पूरा नही कर पा रही थी| वैश्विक पटल पर कोयले की जगह नये उर्जा के स्त्रोतों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी|

इस वातावरण में वैश्विक स्तर पर 1929 की आर्थिक मंदी  का सामना पुरे विश्व को करना पड़ा| मगर विश्व ने नये उर्जा के स्त्रोतो की खोज की एवं पट्रोल/आयल पदार्थ उर्जा के स्त्रोतों के रूप में सामने आये| मगर इनपर अब स्वामित्व कई अरब राष्ट्रों का भी था| अमरीका का चूंकि तकनीक पे स्वामित्व था तो उसने अपनी मनमानी करनी शुरु की| दुसरे विश्व युद्ध के बाद में जब शीत युद्ध चला उस दौर  में अमरीका का भरसक प्रयास रहा की किसी तरह से इन उर्जा के संसाधनों पर कब्ज़ा किया जाये| अत: सोने को स्टैण्डर्ड मापक के रूप में अमरीका ने आदान-प्रदान के लिये विश्व पर थोपा| मगर जल्द ही वैश्विक पटल पर अमरीका के खिलाफ़ सवाल उठने लगे साथ ही उसका सोने का खजाना खाली होने लगा| इस कारण अमरीका ने विश्व पर डॉलर नाम की मुद्रा को कॉमन एक्सचेंज के लिए थोप दिया| और जो भी आवाज अरब राष्ट्रों द्वारा अपना व्यापार अन्य मुद्रा या सोने के रूप में करने को उठी उसे दबा दिया गया| इसी का नतीजा था की गद्दाफ़ी, सद्दाम और अन्य कई लोगो को तानाशाह करार दे कर नेस्तनाबूद कर दिया गया|

इन सारी चीजों पर यदि गौर किया जाये तो तकनीक और प्रभुत्व जमाये रखने का रवैया प्रमुख रहा| लेकिन लंबे समय के बाद उर्जा के नये संसाधनों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है जिससे अमरीका पर निर्भरता ख़त्म की जा सके| इस  के लिये युद्ध स्तर पर काम मोदी सरकार द्वारा चल रहा है| तेल पर निर्भरता खत्म करने के लिये सरकार इलेक्ट्रॉनिक कारे 2020 तक मार्केट में लाने को युद्ध स्तर पर कार्य कर रही है साथ ही एनर्जी के लिये सौर उर्जा को बढ़ावा दे रही है ताकि किसी भी तरह से भारत अमरीका/ डॉलर पर निर्भर न हो एवं 21 वी शताब्दी भारत की हो| ये इतना महत्वपूर्ण एवं विज़न के साथ कार्य हो रहा है की बहुत सारे राजनीतिक पंडितो को भी नही समझ में आ रहा है| हैरानी तो तब होती है की आखिर जो सदी भारत की होने जा रही है उसका प्रचार भाजपा क्यूँ नही कर रही है| बहुत सारे अनसुलझे सवाल भाजपा सुलझा नही पा रही है| अब समय आ गया है की विपक्ष जिस तरह से जाति/ धर्म की राजनीति में भाजपा को उलझाने की कोशिश कर रहा है विपक्ष को विकास के असली मॉडल का दर्शन माननीय प्रधानमंत्री जी को करना चाहिये एवम देश में भी इन क्रांतिकारी परिवर्तनों को लेकर चेतना फैलानी चाहिये| क्रांति जो विकास की क्रांति है, का ही प्रचार हो न की देश तो तोड़ने की राजनीति का प्रचार हो|

 

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